क्या रावण पहला कांवड़िया था, जानें क्या होती है कांवड़ यात्रा, किसलिए कांवड़ यात्रा की जाती है, जानें
कांवड़ यात्रा का नाम सुनते ही कई सवाल मन में उछल-कूद मचाने लगते हैं। जैसे कि वो कौन शख्स था जिसने पहली कांवड़ भगवान शिव पर चढ़ाई? ऐसा करने के पीछे उसकी क्या मंशा थी? अगर आप इन्हीं सब सवालों का जवाब तलाश रहे हैं तो आज हम आपको कांवड़ यात्रा से जुड़ा त्रेतायुग का एक कनेक्शन बताते हैं। त्रेतायुग से जुड़ा कांवड़ यात्रा का ये कनेक्शन आपको अचंभे में जरूर डाल सकता है।
भगवान शिव को इन नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए रावण ने ध्यान किया। इसके बाद रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिव मंदिर में भोलेनाथ का जलाभिषेक किया। रावण के ऐसा करने पर शिव जी को विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्ति मिली। मान्यता है कि यही से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
सभी कांवड़िए मन में मन्नत लिए हुए गंगाजल को अपने कांवड़ में भरते हैं। इस कांवड़ को कांवड़िए रंग-बिरंगे चीजों से सजाते हैं और नंगे पैर ही अपनी यात्रा को पूरा करते हैं। अपने चयनित मंदिर में पहुंचने के लिए कांवड़ियों के पास एक निश्चित तिथि होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी कांवड़ियों को सावन की चतुर्दशी के दिन भोलेनाथ का जलाभिषेक करना होता है।
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