Sunday Success Story : "मैं हार नहीं मानती, मैं हूँ "अपराजिता" IAS Batch 2019
नोएडा | आई ए एस की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी : सबसे मुश्किल परीक्षा में से एक UPSC को पास करने के लिए अपराजिता ने हर तरीके का एक्सपेरिमेंट किया। यूपीएससी को पास करने से पहले उन्हें कई ऐसे लोग मिले जिन्होंने उन्हें बेहद हत्तोसाहित किया।
IAS की सफलता की कहानी : हरियाणा के रोहतक की रहने वाली अपराजिता सिंह सिनसिनवार इस साल यानी 2019 में यूपीएससी की परीक्षा को पास किया है। इस बार सिविल सर्विस की परीक्षा को क्रैक करने वाले 759 कैंडिडेट्स में अपराजिता ने 82वां रैंक हासिल किया है। 25 वर्षीय अपराजिता एमबीबीएस डॉक्टर हैं, उन्होंने पहली बार सिविल सर्विस की परीक्षा साल 2017 में दी थी।
अपराजिता की कहानी दिखने भले ही सिम्पल लगती हो लेकिन उनकी मेहनत बिल्कुल भी सरल नहीं है। बचपन से ही माता-पिता से दूर अपराजिता अपने नाना-नानी के साथ रहती थी। अपराजिता ने अपनी मेडिकल की पढ़ाई पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (PGIMS) से पूरी की है।
अपराजिता के मुताबिक स्कूल के दिनों में वो एक एवरेज स्टूडेंट हुआ करती थी, उनकी हैंडराइटिंग अच्छी नहीं, जिसकी वजह से टीचर कॉपी नहीं पढ़ना चाहते थे। एक बार टीचर ने मार्क्स देने से इंकार कर दिया क्योंकि उन्हें अपराजिता की कॉपी ही समझ में नहीं आ रही थी। उन्होंने अपनी कमजोरी पर काम करना शुरू जिसके लिए उन्हें स्कूल में बेस्ट हैंडराइटिंग का अवार्ड मिला।
अपराजिता जब यूपीएससी की तैयारी शुरू की तो बाकी लड़कियों की तरह उन्हें भी लोगों के ताने सुनने को मिले,इसके बावजूद उन्होंने काम जारी रखा।
अपराजिता एक महीने की थी जब उनके माता-पिता नाना-नानी के घर छोड़कर चले गए थे। ऐसे में माता-पिता के प्यार उन्हें नाना-नानी से ही मिला। ऐसे में कलेक्टर बनने के पीछे भी नाना-नानी का अहम योगदान है, अपराजिता मुताबिक बचपन में जब वो नाना के साथ बाहर जा रही थी, तब रास्ते में किसी कलेक्टर की गाड़ी गुजर रही थी जिसके बारे में नाना ने मुझे सवाल, कि ये कौन है? इस पर उन्होंने बताया कि जब आप सोसाइटी के लिए कुछ करना चाहते हैं तो आप यहां पहुंचकर कर सकते हैं। यहां से उन्होंने आईएएस बनने का ख्वाब देखा।
अपराजिता बचपन में शारीरिक तौर पर काफी कमजोर थी। इसके बावजूद वो जो भी काम करती उसमें जीत जरूर हासिल करती, ऐसे में उनके नाना ने उनका ना अपराजिता रखा, इसके मतलब कभी न हार मानने वाली। यही सिद्धांत अपराजिता ने अपने जीवन में भी जारी रखा।
अपराजिता मानती हैं कि व्यक्ति अगर खुद से वादा कर ले तो उसे पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। यही नहीं उनके जीवन में एक वक्त ऐसा था जब वो ड्यूटी और तैयारी दोनों एक साथ कर रही थी इस दौरान उन्हें चिकनगुनिया और फ्रैक्चर जैसी समस्या से जूझना पड़ा।, जिसके बाद मुझे लगा अब नहीं हो सकता। उस वक्त मैंने वो सबकुछ छोड़ दिया लेकिन खुद से किया वादा नहीं छोड़ा। इसलिए मैं हमेशा मानती हूं कि कभी भी जब तक मंजिल न मिले तब तक हार नहीं माननी चाहिए।
साभार- दिल्ली नॉलेज ट्रैक
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