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IAS  सैयद रियाज अंसारी के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी 

 


IAS  सैयद रियाज अंसारी के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी 


 


"रख हौसला वो मंजर भी आयेगा,प्यासे के पास चल के समन्दर भी आयेगा,
थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर, मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा।”



 


  नोएडा | हर जीवन की कहानी एक सी नहीं होती, लेकिन किसी मोड़ पर कुछ ऐसा होता है जिससे पूरी कहानी बदल जाती है। हम बात कर रहे हैं इस बार की सिविल परीक्षा में 261 रैंक लाकर आईएएस बनने वाले सैयद रियाज़ अंसारी की। जिन्होंने डीकेटी  से अपनी बातचीत के दौरान कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं की बात की जो ना आने वाली पीढ़ी को संघर्ष की सीख देता है बल्कि कामयाबी का एक रास्ता भी दिखाता है।  महाराष्ट्र के रहने सैयद रियाज एक साधारण परिवार से आते हैं तीसरी क्लास तक पढ़े पिताजी सरकारी नौकरी में हैं और मां सातवी क्लास तक पढ़ी है। पिता का सपना था कि बेटा आईएएस बने लेकिन सैयद रियाज पढ़ने में थोड़े कमजोर थे और बारहवीं में एक बार फेल भी हुए। 



ग्रेजुएशन के दौरान सैयद रियाज पर नेतागीरी करने का जुनून सवार हो गया लेकिन पिता का सपना भारी पड़ा और उसे पूरा करने में जुट गए। पहली दो कोशिशों में वे पीटी में सफलता हासिल नहीं कर सके, तीसरी बार वे इंटरव्यू तक पहुंचे किस्मत ने साथ नहीं दिया और हद तो तब हो गई जब चौथी बार वे मेन की परीक्षा ही पास नहीं कर सके। 


https://cityandolannews.page/article/Sunday-Success-Story-:-"मैं-हार-नहीं-मानती%2C-मैं-हूँ-"अपराजिता"-IAS-Batch-2019/APwYPG.htm



तबतक मुश्किलों का दौर शुरू हो चुका था नाते रिश्तेदार ताने देने लगे और कहने लगे कि उम्र निकल रही है लड़के की शादी करा दो, लेकिन पिता का हौसला पहाड़ से बड़ा था उन्होंने कहा कि मैं अपना घर बेच दूंगा लेकिन बेटे की पढ़ाई में बाधा नहीं आनी चाहिए। 



अपनी कड़ी मेहनत की दम पर इस बीच सैयद रियाज का सेलेक्शन महाराष्ट्र फॉरेस्ट सर्विस में हो गया जो एक बड़ी राहत की बात थी कि अब वे कम से कम आर्थिक तौर पर आजाद हो गए। इस दौरान उन्होंने सिविल सर्विसेज को लेकर अपना पांचवां प्रयास किया और आखिरकार अपनी मंजिल हासिल करने में कामयाब रहे। नतीजों के बाद जब उन्होंने अपने पिता को फोन किया तो दो मिनट तक फोन पर कुछ कही नहीं पाए फिर होठों से यहीं निकला कि सपना पूरा हो गया।खास बात ये रही कि रियाज ने इसके लिेए कभी कोई कोचिंग नहीं की, शुरुआती दौर में उन्होंने महाराष्ट्र में कुछ दिनों के लिए गाइडेंस जरूर ली थी फिर वे जामिया मिलिया के सेल्फ स्टडी ग्रुप में शामिल हो गए जहां पढ़ाई लिखाई का एक बेहतर माहौल मिला।


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उन्होंने ऑप्शनल सब्जेक्ट के तौर पर एंथ्रोपोलॉजी का चयन किया था जिसमें उन्हें 302 नंबर आए हैं।आज सैयाद रियाज अपने समाज के नौजवानों के लिए एक रोल मॉडल हैं, कामयाबी का वो चिराग आने वाले दिनों में दूसरों को राह दिखाता रहेगा।


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